लोगों से जब कह न सका तो मजबूरन कलम उठाना पड़ा,दर्द जब दिल ये सह न सका तो हमदर्द कागजों को बनाना पड़ा।
शुक्रवार, 22 मई 2015
मैं
ये जो खुद को शहरों की गलियारों मे पाता हूँ मैं।
बेहतर भविष्य की कामना में भागता जाता हूँ मैं।
है प्रतिद्वंद्वी युग की खामियाँ कुछ दिल का बहकावा है।
युवाओं के इस देश में युवा हीं बेचारा है।
पर हम युवा है यारों युवा भी कहीं कभी हारा है?
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