बुधवार, 24 जून 2015

और मैं था बदल गया।

फिर आज मैंने देखा उसे
उसी पुराने राह पर
वही,बिल्कुल वही
जैसे खिलाफ हो बदलाव के
ठिठक गया वो यह सोचकर
कि इस मोड़ फिर कैसे मिले
हम ठहरना चाहते थे
पर समय भी ठहरा कहाँ है
कदम था ठहरा हुआ पर
सड़क जैसे चल पड़ा
मैनें जब मुड़कर देखा उसे
वह था अनमना सा चल रहा
मैं मुड़ पड़ा,
पीछा किया
कुछ दूर उसके पदचाप का
पर रुकना पड़ा मुझे हार कर
उसी पुराने द्वार पर
क्योंकि वह खिलाफ था बदलाव के
और मैं था बदल गया।

29/05/2015

मंगलवार, 2 जून 2015

मेरा अंत

बरखा बहार लाई सावन की आड़ में।
माँझी मुझे छोड़ गया बीच मंझधार में।

दिखे है न साहिल और डूब गई कश्ती।
जाऊँ कहाँ मैं अब खोजूँ कहाँ बस्ती?

रब जाने मंजिल अब मेरा कहाँ है?
हमराह मेरे अब बस वो खुदा है।

दूर हुआ था जब मैं अपने शहर से।
चेहरा पुताया था जब दुनिया के डर से।

जिंदगी के दोराहे पे खड़ा था बेचारा।
राह जो पकड़ा मैंने वो था अँधियारा।

अनजान राहें थी और चला बेसहारा।
जीवन के दौड़ में हूँ अब मैं तो हारा।

ठौर पराया था यह छूटना था एक दिन।
कच्चे थे धागे इन्हें टूटना था एक दिन।