बुधवार, 29 अप्रैल 2015

रामू

रामू नाम था उसका
मजदुरी करता था वह
या शायद बेगारी
बिहार-नेपाल के शायद हर गाँव मेँ काम कर चुका था वह
ऐसा उसकी बातों से लगता था
हमारे घर भी  काम किया था उसने 
पर वह टिक न सका
आखिर क्यों?
पैसे तो चाहिए थे नहीँ उसको
भोजन?
नहीँ खाने की तो उसे पूरी आजादी थी
फिर क्या चाहिए था उसे?
शायद प्यार भरे दो बोल जिसकी खोज मेँ वह आज भी भटक रहा है|

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