गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

वीआईपी संस्कृति

समान है सब फिर यह अतिविशिष्टता क्यों
लोकतंत्र में हो रही यह धृष्टता क्यों
अभिशाप है ऐसा यह जिसे खुद को हमने दिया है
प्राणघातक जाम में चुपचाप अबतक हमने जिया है
अपने सेवक का जो हमने आजतक सेवा किया है
वज्र बनकर हम गिरेंगे इस विकास-बाधक शूल पर
अब जो हुए है खड़े हम अभिशाप यह हरकर रहेंगे
समान है सब समानता का हक अपना लेकर रहेंगे।
#QuitVIPCulture

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